सोमवार, अक्तूबर 31, 2011

वहा कौन् है तेरा मुसफ़िर् जायेगा कहा



''वहा कौन् है तेरा मुसफ़िर् जायेगा कहा
दम ले ले घडी भर ये छैया पायेगा कहा ''
गाइड फ़िल्म का ये  गीत न जाने क्यू एक भजन सा लगता है. जहन मे इस गीत को अपने बोल देने वाले सचिन देव बर्मन को श्रद्धा से नमन करने का मन होता है. आज उन्हे याद किया भी जाना चाहिय. सचिन दा ने आज ही के दिन 1975 को  दुनिया को अल्विदा कहा था.  मैने न जब् से होश संभाला सचिन दा के गाने पता नही क्यू ज्यादा ही पसंद है.फिर चाहे वो  '' मेरी दुनिया है मा तेरे आन्चल् मे सुख कि छाया तु गम के जन्गल् मे'' हो या फ़िर् आराधना का ''सफ़ल् होगी तेरी आराधना, काहे को रोये.'' कभी ये गीत उत्साहित कर देते हैं तो कभी कभी रिश्तो कि बात कहते है. कभी लगता है कि दरगाह शरीफ़् मे कोइ मस्त हो के सुफ़ियाना कलाम सुना रह है तो कभी मन्दिर की आरती सा लगता है उनका गीत. अमर गायक को मेरा नमन...


परिचय करीब् से 
एस डी बर्मन के नाम से विख्यात सचिन देव वर्मन हिन्दी और् बान्गला फिल्मो के विख्यात संगीतकार और गायक थे। उन्होंने अस्सी से भी ज़्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया था। उनकी प्रमुख फिल्मों में मिली, अभिमान, ज्वेल् थीफ़्, गाइड, प्यासा, बन्दनी, सुजाता, टेक्सि ड्राइवर  जैसी अनेक इतिहास बनाने वाली फिल्में शामिल हैं।

सितार वादन करते थे
संगीत की दुनिया में उन्होंने सितारवादन के साथ कदम रखा। कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1932 में कलकत्ता रेडियो स्टेशन पर गायक के तौर पर अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने बाँग्ला फिल्मों तथा फिर हिंदी फिल्मों की ओर रुख किया।


मन के राजा थे सचिन दा 
बर्मनदा के बारे में फ़िल्म इंडस्ट्री में एक बात प्रचलित थी कि वो तंग हाथ वाले थे यानी ज़्यादा खर्च नहीं करते थे । उन्हें पान खाने का बेहद शौक था और वो अपने पान भारतीय विद्या भवन, चौपाटी से मंगाते थे । वो फ़ुटबॉल के शौकीन थे । एक बार मोहन बागान की टीम हार गई तो उन्होंने गुरुदत्त से कहा कि आज वो खुशी का गीत नहीं बना सकते हैं. यदि कोई दुख का गीत बनवाना हो तो वो उसके लिए तैयार हैं । दरअसल वो जो भी काम करते थे, पूरी तल्लीनता के साथ करते थे. दादा ने संगीत नाटक अकादमी, एशिया फ़िल्म सोसायटी, फ़िल्म आराधना के लिये सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का पुरस्कार जीता. भारत सरकार ने उन्हे पद्म श्री का अवार्ड भी दिया.


रविवार, अक्तूबर 30, 2011

होमी जहांगीर भाभा का जन्मदिन आज


                    होमी जहांगीर भाभा  (३० अक्तूबर, १९०९ - २४ जनवरी, १९६६) 
भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च १९४४ में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। भाभा का जन्म मुम्बई के एक सभ्रांत पारसी परिवार में हुआ था। एलफिंस्टन कालेज रायल इंस्टीट्यूट आफ साइंस मुंबई से उन्होंने बीएससी पास किया और उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रहकर सन् १९३० में स्नातक उपाधि अर्जित की। सन् १९३४ में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
जर्मनी में उन्होंने कास्मिक किरणों पर अध्ययन और प्रयोग किए। उनकी कीर्ति सारे संसार में फैली। भारत वापस आने पर उन्होंने अपने अनुसंधान को आगे बढ़ाया। भारत को परमाणु शक्ति बनाने के मिशन में प्रथम पग के तौर पर उन्होंने १९४५ में मूलभूत विज्ञान में उत्कृष्टता के केंद्र टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की स्थापना की। डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक, एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे। १९४८ में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए।१९५३ में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक का २४ जनवरी सन १९६६ को एक विमान दुर्घटना में दुखद निधन हो गया। (विकी से साभार)

बुधवार, अक्तूबर 26, 2011

इस दिवाली इन्हें खुश करें न



वो जिन्होंने बच्चो को काबिल बनाने जिंदगी सौंप दी 
वो जिनके कंधे बच्चों को उठाने में कभी न झुके 
अब जिनके बच्चे उन्हें बोझ समझते हैं
वो लोग जो न जाने क्यों ओल्ड एज होम्स में रहते हैं
इस दिवाली उन्हें खुश करें न।




वो जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती
वो जिनके सरों पर छत भी नहीं है
वो जिनके पास तन ढ़कने कपड़े नहीं
वो जो न जाने दिन भर कचरे में क्या तलाशते हैं
वो जो न जाने क्यों मुस्कुराते नहीं
इस दिवाली इन्हें खुश करें न.


वो जिनकी अंगुली हम पकड़ कर चले
वो जिनके चेहरे पर पड़ी झुर्रियां
वो जो देर तक करते थे इंतजार
वो जिनकी बात कभी टाली नहीं गई
अब न जाने क्यों उनकी बात कोई मानता नहीं
इस दिवाली उन्हें खुश करें न



वो जिन्होंने आश्रमों में होश संभाला
वो जिनके नामों में वल्दियत नहीं
वो जो हैं मां-बाप से महरूम
वो न जाने क्यों हमेशा रहते हैं उदास
इस दिवाली उन्हें खुश करें न।


 नितिन पटेल 

मंगलवार, अक्तूबर 25, 2011

धनतेरस पर अपेक्षा से अधिक धनवर्षा

धनतेरस पर ऐसा महसूस हुआ मानो शहर के बाजारों के लिए कुबेर ने अपने द्वार खोल दिए. सराफा, ऑटो मोबाइल, मोटर साईकिल, रेडीमेड गारमेंट, बर्तन, रियल एस्टेट और इलेक्ट्रोनिक आइटम्स पर इस कदर धन वर्षा हुई की व्यापारी भी हैरत मैं पद गए. शहर में गुरु पुष्य नछत्र में 55 करोड के कारोबार के बाद चन्द  व्यापारियों को धनतेरस पर अधिक व्यापार न होने की आशंका थी. जिसे त्यौहार के वक्त सुबह से रात तक अनवरत हो रही ग्राहकी ने निराधार साबित कर दिया. व्यापारियों की 75 से 80 करोड रुपये की बिकवाली की
उम्मीद को दुगना  करते हुए धनतेरस के दिन बाजार मैं करीब डेढ़ सो करोड़ रुपये की धन वर्षा हुई.  सराफा मैं करीब 45 करोड , ऑटो मोबाइल में 25 करोड , मोटर साईकिल में 10, रेडीमेड गारमेंट में 15, बर्तन में 10, रियल एस्टेट 15 और इलेक्ट्रोनिक आइटम्स लगभग 30 करोड़ के कारोबार के आंकड़े व्यापारिक सूत्रों से मिले.जबलपुर नगर जो की कुल आबादी के सापेक्ष ये व्यवसायिक आंकड़े बेशक बेहद आश्चर्य जनक रहे उसका मूल कारण था केंद्रीय कर्मचार्यों को मिलने वाला बोनस,वेतन में आए बदलाव, ऋण की सरल उपलब्धता, निजी-व्यवसायिक गतिविधियों से आय में वृद्धि, ग्रामीण-क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में वृद्धि, यानी कुल मिला कर "आम आदमी की क्रय-शक्ति में इज़ाफ़ा"
यह आंकड़ा और अधिक बढ़ सकता था अगर राज्य-सरकार के कर्मचारियों को बोनस के समरूप कुछ  मिल पाता.   

रविवार, अक्तूबर 23, 2011

जबलपुर के बाज़ार में धनतेरस के पहले ही गुरुपुष्य नक्षत्र में बरसा धन

        गुरु पुष्य के आगमन के ज्योतिषीय-ऐलान से प्रभावित हुए ग्राहक सोच रहे हैं  समृद्धि-रथ गुरु-पुष्य पर सबसे क़रीब होगा और इसके आने पर धनतेरस के पहले की धनतेरस  से ज़्यादा मुद्रा बाज़ार-सरिता में प्रवाहित कर दी. बेशक भारतीय बाज़ार भविष्य-वक़्ताओं से रेग्यूलेट हो रहा है इसके लिये इस बरस का  गुरु-पुष्य सबसे  ताज़ा उदाहरण है. मेरे एक मित्र को धीरज (जो एक सरकारी अधिकारी हैं) बतातें हैं कि उनके बास जो टूर पर थे ने उनको फ़ोन करके बताया :- सुनो भाई, घर ज़रा गाड़ी भेज देना, श्रीमति को कुछ ज्वेलरी खरीदनी है. अरे आप भी अपनी श्रीमति जी को भेज दीजिये ऐसा शुभ महूर्त बार बार नहीं आता .पूरे दिन बैंकों से कैश बाहर आता रहा,तो किसी ने कार्ड स्पैम कराया तो किसी का क्रैडिट कार्ड काम आया नेट-बैंकिंग का भी खूब स्तेमाल हुआ .   यानी बाज़ार पर गुरु-पुष्य हावी रहा. 
काठमाण्डू-ज्योतिष-केंद्र के संचालक माधव सिंह यादव की मानें तो इस साल भारतीय अर्थ-व्यवस्था में ग्रोथ रेट में भी इज़ाफ़ा होगा जो आने वाले बरसों में भारत की मज़बूत अर्थव्यवस्था आधार साबित होगी. जबलपुर के संदर्भ में श्री माधव का कहना है कि इस शहर के विकास में औद्योगिक के संसाधन की बाधा लगभग समाप्त है अगले दो वर्षों में सबसे पहले पर्यटन विकास सबसे तेजी से फ़िर औद्योगिक घरानों का इस भूमि पर आकर्षित होना आप देख सकते हैं. परंतु अगर पाज़ीटिव वातावरण बता तो यह स्थिति तेज़ी से आएगी. 
     
  जो खानदानी रईस है उनका मिजाज हरदम नरम रहा है 
तुम्हारी नरमी बता रही है, तुम्हारी दौलत नई नई है.

बाजार एक बार फिर पुराने रईसों के साथ नव धन कुबेरों का धन बटोरने तैयार है. 24 अक्तूबर को धनतेरस है जिसके लिए व्यापारियों का एक बड़ा तबका इंतजार में रहता है. यहाँ देखने वाली बात ये है कि महाकौशल में हाल में व्यपारियो कि देन गुरु पुष्य नछत्र में इतनी धन वर्षा हो चुकी है की समझ नेही आ रहा है की अब गोल्ड, डाईमंड, ऑटो मोबाइल, प्रोपर्टी, इलेक्ट्रोनिक आइटम और दूसरे चीजों पर इन्वेस्ट कोन करेगा. करेंगे जनाब अब पुराने रईसों के साथ नई दोलत वाले भी एक बार फिर इन्वेस्ट करने कि तयारी में हैं. गुरु पुष्य नछत्र में अकेले जबलपुर में  गोल्ड और  डाईमंड   ऑटो मोबाइल  प्रोपर्टी और दूसरे चीजों में करीब ५५ करोड़ का इन्वेस्टमेंट किया गया. धन तेरस में ये आंकड़ा ७५ करोड़  होने के आसार दिखाई दे रहे हैं. 
कृत्रिम मुहूर्त से बाज़ार जगमगाया  
                            बाजार में  धनतेरस से ठीक पहले आये सो काल्ड मुहूर्त को लेकर अनालिस्ट अपने अपने चश्मों से देख रहे हैं. कुछ का कहना है कि ग्राहकों के साथ सेल्स टेक्स विभाग धनतेरस पर बाजार के विश्लेषण कि तैयारी में लगा है कि कहीं व्यापारी कर चोरी न कर लें. इसे में धनतेरस  से ठीक पहले कोई मुहूर्त यदि ला दिया जाये तो खरीदारों के साथ कर अधिकारीयों को भी भ्रमित करना काफी आसन हो सकता है. जाहिर सी बात है  अब व्यापारी आराम से यह बात कह सकते है कि धन तेरस में ज्यादा खरीदी नहीं हो पी या फिर गुरु पुष्य नछत्र में ग्राहकी ठीक नहीं रही. 
गोल्ड में इन्वेस्टमेंट बेहतर 
गोल्ड में इन्वेस्टमेंट को को बेहतर बताया जा रह है. क्योकि गोल्ड और डाईमंड कि रीसेल ढंग कि मिल जाती है पर कोई मुझे ये बताये कि ऑटो मोबाइल और प्रोपर्टी के अलावा क्या गोल्ड या  डाईमंड हम बेचने निकलते है.

धनतेरस पर डायमण्ड सोने-चांदी  की खरीदी का बोलबाला होना तय है. कयास ये लगाए जा रहे हैं .
भूमि-भवन:- एक ज्योतिषाचार्य का कथन है कि इस बरस भूमि-भवन की खरीद-फ़रोक्त भी तेज़ी से होगी. 
यानी कुल मिला कर ग्रह-दशाओं का खेल जबलपुर के लिये धनात्मक ही रहेगा. 


शनिवार, अक्तूबर 22, 2011

शहीद अशफाक उल्ला खान जिंदाबाद

शहीद अशफाक उल्ला खान 


 आज ही के दिन 22 अक्टूबर 1900 को आजादी के रणबांकुरे और भारत माता के सपूत अशफाक का जन्म हुआ. आज के आधुनिकता के दौर मैं नइ पीढ़ी आजाद हवा मैं सांस तो लेना चाहती है पर उन योद्धाओ के योगदान को याद करने वक्त नहीं निकल पाती. सारा दिन इस इंतजार मैं था कि कोई तो उन्हें याद करता मिले.  अशफाक को महज 27 कि उम्र मैं 19 दिसम्बर 1927  को फंसी दे दी गई.  देश की बेहतरी के लिए राम प्रसाद बिस्मिल के साथ उन्होंने काफी संघर्ष किया.  दोनों अच्छे दोस्त और शायर भी. रामप्रसाद जहाँ बिस्मिल के तखल्लुस से लिखते वहीँ अशफाक हसरत के. अशफाक का जन्म शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश मैं हुआ. उनके पिता, शफीक उल्लाह खान पठान और  माँ का नाम मज्हूरउन निशा बेगम था. अशफाक 4 भाइयों में सबसे छोटे थे. उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के क्लासमेट थे.
हुई बिस्मिल से दोस्ती 
जब मोहनदास लालकृष्ण गांधी ने चौरी चौरा की घटना के बाद 1922 में असहयोग आंदोलन वापस लिया तो कई भारतीय युवक उदास हो गए, अशफाक भी उनमें से एक थे. इन युवको का सोचना था कि आजादी के लिए क्रांति जरुरी है. दोनों की दोस्ती को तब से अब तक कोमी एकता की मिसाल माना जाता है. 
काकोरी  ट्रेन डकैती
क्रांतिकारियों का मानना कि नरमी से आजादी हासिल नहीं कि जा सकती और गोरे अंग्रेजो को डरना है तो हथियारों कि जरुरत होगी. नए क्रांतिकारी आंदोलन के लिए पैसो कि जरुरत थी जिसके लिए काकोरी ट्रेन डकेती कि योजना बने गई. 9 अगस्त 1925  अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व के तहत आठ अन्य क्रांतिकारियों ट्रेन लूटी . उनके साथ में वाराणसी से राजेंद्र लाहिड़ी, बंगाल से सचिन्द्र  नाथ बख्शी, उन्नाव से चंद्रशेखर आजाद, कलकत्ता से केशब  चक्रवोर्ति , रायबरेली से बनवारी लाल, इटावा से मुकुन्दी लाल, बनारस से मन्मथ नाथ गुप्ता और शाहजहाँपुर से मुरारी लाल थे. 26 सितम्बर 1925 सितंबर को बिस्मिल और अशफाक को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. दोनों को अलग अलग जेलों मैं एक ही दिन फंसी दी गई.
अशफाक की  डायरी से
"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये, ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना;
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं, जबाँ तुम हो लबे - बाम आ चुका है आफताब अपना ".
शहीद अशफाक उल्ला खान  जिंदाबाद 
शहीद अशफाक उल्ला खान  जिंदाबाद 
नितिन पटेल 

ये बच्ची चाहती है कुछ और दिन मां को खुश रखना



ये बच्ची चाहती है कुछ और दिन मां को खुश रखना 
वो कपड़ों की मदद से अपनी लंबाई छिपाती है।
 मुहाजिरनामा और मां जैसी पुस्तकों के रचियता मुनव्वर राणा के इस शेर ने उनके सुनने वालों के चेहरों पर रौनक ला दी। मौका था १७ अक्तूबर की रात अंजुमन इस्लामिया में जबलपुर कौमी एकता कमेटी द्वारा आयोजित ऑल इंडिया मुशायरा कार्यक्रम का। राणा के शेर 
कीड़े तमाम रिश्तों के शरबत में आ गए 
 जब से खराब लोग सियासत में आ गए,
भी श्रोताओं ने काफी पसंद किया...
राणा  ने मुहाजिरनामा के शेर सुनाकर दर्शकों की आंखे नम कर दी जिसमें उन्होंने कहा कि
 मां को छोड़ आए महलिया साथ लाए हैं कि सोना छोड़ आए हम पीतल लेके आए हैं। 
 अपनी खुदगर्जी पर अब भी रंज है हमको बेटा साथ ले आए भतीजा छोड़ आए हैं।
 स्वास्थ्य की वजह से जल्द मंच से रवाना हुए मुनव्वर ने पूरी महफिल का आकर्षण रहे। शेरों शायरी का दौर देर रात तक जलता रहा। लेकिन सभी के दिलों में राणा गहरी छाप छोड़ गए। मुनव्वर राणा के बाद मुल्क के नामवर शायर राहत इंदौरी ने देर रात मंच संभाला। उनके शेर
 ये सहारा जो नहीं हो तो परेशां हो जाएं
 मुश्किले जान ही ले लें अगर आसां हो जाएं।

 ये जो कुछ लोग फरिश्तों से बने फिरते हैं
 मेरे हत्थे कभी चढ़ जाएं तो इसां हो जाएं 

मैं वो दरिया हूं हर बूंद भंवर है जिसकी 
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा कर के।

 
मुंतजिर हूं कि सितारों की जरा आंख लगे 
चांद को छत पर बुला लूगा इशारा करके।
 कम समय तक मंच पर रहे राहत के हर एक शेर पर तालियां और वाह-वाह का शोर गूंज रहा था। इस दौरान जौहर कानपुरी, रईस अंसारी, मंजर भोपाली, अतुल अजनबी, तनवीर गाजी, डा अंजुम बाराबंकी,अतुल अदनवी, ग्वालियर, असर सिद्दीकी, डा. नसीम निखत, शबाना शबनम, शबीना अदील सहित कई शायरों ने भी अपने कलाम पेश किए।
 इन शेरों की भी सराहना
 तुम्हारा चेहरा चरागों में कौन रखता है 
मेरी तरह तुम्हें आंखों में कौन रखता है।
 शबीना अदीब कानपुरी।
खुदाए बरतर नए बरस में बस एक काम कर दे 
तू अपनी दुनिया से जालिमों का हर एक किस्सा तमाम कर दे।
नसीम निखत
 जुल्म के सारे चिरागों को बुझाकर देखो
अपनी किस्मत से बहुत दूर अंधेरा होगा। 
 जबलपुर के अनवर निजामी
कि कोई भी रोक न पाता गुजर गया होता
मेरा नसीब मोहब्बत में संवर गया होता
न आई होती गर बेगम मेरी अदावत को,
मैं अस्पताल की नर्सों पर मर गया होता।
पप्पू लखनवी




शुक्रवार, अक्तूबर 21, 2011

आग :



प्रकाशनाधीन कृति आग का अंश आग से कुछ अंश भाई नितिन पटेल जी के ब्लाग अपना शहर में प्रस्तुत कर रहा हूं... आशा है पसंद करेंगे 
 माचिस की तीली के ऊपर
बिटिया की पलती आग
यौवन की दहलीज़ पे जाके
बनती संज्ञा जलती आग
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सभ्य न थे जब वे वनचारी
था उन  सबका एक धरम
शब्द न थे संवादों को तब
नयन सुझाते स्वांस मरम .
हां वो जीवन शुरू शुरू का
पुण्य न था न पापी दाग…!
*************************
खेल खेल में वनचारी ने
प्रस्तर-प्रस्तर टकराए
देख के चमकीले तिनके वो
घबराये फिर मुस्काये
बढ़ा साहसी अपना बाबा
अपने हाथौं से झेली  आग…!
***********************
फिर क्या सूझा जाने उनको
आग से समझी नाते दारी .
पहिया बना  लुड़कता पत्थर
बना आदमी पूर्ण शिकारी .
मृगया कर वो देह भूनता
बन गई जीवन साथी आग …!
***********************
जब   विकास  का  घूमा  पहिया
तन पत्तों से ढांप लिया …,
कौन है अपना कौन पराया
यह सच उन सबने भांप लिया !
तभी भूख ने दल बनवाये
उगी मन मन भ्रम की आग !
***********************
जाड़ा बारिश धूप तपन सब
वनचारी ने जान लिया
छत से छांह आग से उष्मा
अनुप्रयोगों से ग्यान लिया
और कभी अपना गुम देखा
भय की मन में जागी आग .!
  ***********************

रविवार, मई 16, 2010

... तो देश का क्या होगा ?

न पीना ख़राब है न पिलाना ख़राब है
पीने के बाद प्रेक्टिस और खेल में ख़राब प्रदर्शन ख़राब है
ये खिलाडी समझ बैठे है कि ये कुछ भी करेंगे और सब खामोश बैठे रहेंगे। अरे मोदी जैसो कि नहीं चली तो ये किस मुगालते में जी रहे है। कुछ खिलाडियो के बयान देखे तो कुछ याद आ गया। आपको याद होगा किसी बीमा कम्पनी के विज्ञापन में कुछ खिलाडी बड़े रुआसे अंदाज में कहते है " जब ता बल्ला चलेगा सब कुछ तभी तक है " में आज उन सारे खिलाडियो से एक ही सवाल पूछना चाहता हूँ कि ये सब किस लिए ?
आप कहते है कि जब तक खेल रहे है तभी तक आपको पूछ परख है इसलिए जितना मिला समेटा चाहे खेल हो या विज्ञापन , इसका खेल पर असर पड़े न पड़े कोई फर्क भी शायद नहीं पड़ता।
एक फौजी, सरकारी अधिकारी हो या अन्य कर्मचारी सभी कि पूछ परख शायद तभी तक ज्यादा होती जब तक वे रिटायर नहीं हो जाते
मेरा सवाल ये है कि यदि आप कि तरह ही सभी सोचने लगे तो देश का क्या होगा ?

सोमवार, जुलाई 13, 2009

कुछ बात है की जूते पड़ते नही हमें भी ...

आज बहुत दिन बाद कुछ ऐसा देखा की बरबस ही हँसी आ ही गई
अपने शहर की परी रोड (अरे किसी ज़माने में कही जाती थी जब हम कॉलेज में थे) पर महिला पुलिस कुछ लोगो को कान पकड़ कर उठक बैठक लगवा रही थी
शोहदे थे बच्चियो को परेशां करने वाले
थोड़ा ठहरा हंसा लेकिन फिर सिहर भी गया की क्या इस उठक बैठक से सही में सुधर जायेंगे ये लोग
पिछले दौर की बात होती तो शायद मन विचलित न होता पर
आज के एमएम एस के दौर में न जाने क्यूँ मन घबरा ही जाता है
न जाने क्या सोच रहा है आज का यूथ जो महज दस बारह की उमर में जवान हो जाता है और मालती मीडिया एनाबल्ड मोबाइल की मांग करता है
आज शायद वो दौर नही जब एक बार कान पकड़ कर उठक बैठक लगाने वाला युवा जरुरी नही की ताउम्र महिला महाविद्यालयों के आस पास न दिखाई दे
आज के युवा का आदर्श थोड़ा सा बदला हुआ हे जो पीढी अब
शायद एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने गाना गाने वाले देवानंद को नही
जरा सा दिल में दे जगह तू गाने वाले इमरान हाश्मी और डर के किरण का राग आलापने वाले शाहरुख़ को अपना आदर्श मानती है जो कुछ अलग ही सोचते है ....
इन शोहदों को कैसे सुधारे ये विचार का प्रश्न है
उठक बैठक भी कभी कभी लगवाई जाती है और लड़किया है की इन्हे जूते भी नही मारती

बुधवार, अप्रैल 22, 2009

पाठशाला छोड़ दी

एक दिन में गलती से कालेज में
जा बैठा था एक अजीब सी क्लास में
अपनों सा था लिबास पर रंग था भगवा जरा
तेज थी वक्ता की वाणी
सुर में भी एक ओज था
कह रहे थे सुन लो बंधू गांठ बंधो तुम इसे
"जिस समस्या पर हो नजर तमाम मुल्क की
जिस की खातिर कोई मरने मिटने को तैयार हो

जिस की खातिर एक भाई दुसरे से दूर ही रहे
जिस का नाम आते ही माँओ की पेशानी पर बल पड़े
वो समस्या "समस्या" नही हथियार है
हथियार भी ऐसा की समझलो तुम की ब्रह्मास्त्र है
वो समस्या हल न करना
हर चुनाव में भुनाएंगे
लोग भावनात्मक मुर्ख हैं
हम फिर से जीत जायेंगे
पाठशाला मैं जब ये सबक पढाया गया
क्रोध भी आया फिर तरस आया मुझे
और किसको जा कर के समझाता में अपनी बात को
बस वो सबक था आखिरी फिर पाठशाला अच्छी न लगी
और वो दिन था की मैंने पाठशाला छोड़ दी

पाठशाला छोड़ दी

गुरुवार, फ़रवरी 12, 2009

कमबख्त जिन्दगी

बिल्कुल किसी दिल फैंक हसीना की तरह है
कमबख्त जिन्दगी है कि हाथ छोड़ती नही

कोशिश जरूर की पर अब लगने लगा मुश्किल
बेडिया है ये समाज की कि टूटती नही

बहुत देख चुके है और अब नहीं ख्वाहिश
चेहरे वही है पुराने कोई बदला कही नही

अब साथ में जो है तो कमबख्त यही है अच्छी
अब "जिन्दगी" है मेरी कोई और तो नहीं

रविवार, जनवरी 04, 2009

जंगल का कानून

कुछ दिनों से वाइल्ड लाइफ के प्रति अचानक रुझान बढ़ गया है या ये कह सकते है की अचानक मेरा जंगल तबादला हो गया हो
मैंने कहा डिस्कवरी में तो बहुत देखा है थोड़ा रूबरू होकर भी वाइल्ड लाइफ का लुत्फ़ उठा लिया जाए
हुआ ये की में बहुत दिनों से वाच कर रहा था के कान्हा के शेरो के एक समूह में एक ग्रुप लीडर टाइप के शेर ने अचानक एक कुत्ते को ग्रुप में शामिल कर लिया
यही नही अब शेर उसे दहाड़ने, शिकार, मेनेजमेंट के फंडे भी सिखाने लगा
कुछ दिनों में कुत्ते ने सब कुछ एसे फोलो किया की मानो
जनम से ही शेर हो
अब वह लगभग भूल चुका था की वह तो कुत्ता है
अब इम्तिहान की घड़ी आई
कुछ दिनों तक लीडर कुत्ते को ग्रुप में ज़माने पल पल साथ रहा
जहा कुत्ता गलती करता और विरोध होता तो लीडर दहाड़ मर कर सब को शांत करा देता
अब एक दिन लीडर ने सोचा की अब कुत्ता पुरी तारह से घुल मिल गया है और अब वह आराम से उस पर भरोसा कर सकता है
लेकिन दूसरी तरफ़ असंतुष्ट शेरो के दिमाग में कुछ और चल रहा था
अब लीडर शेर ने ख़ुद आराम से बैठकर कुत्ते को अपना प्रतिनिधि बनाकर ग्रुप के साथ शिकार पर भेजना शुरू किया
इस तरफ़ शेर ने आराम से कुत्ते को ग्रुप के साथ शिकार करने भेजा
और उस तरफ़ कुछ ही दिनों बाद ग्रुप नम आँखों के साथ इस दुःख भरी ख़बर के साथ लौटा की माननीय प्रतिनिधि जी अब नही रहे
लीडर शेर ने तब तो कल का ग्रास बने अपने प्रति निधि की मौत पर सब से मौन करवा कर शोक व्यक्त करा लिया
लेकिन बाद में मामले की उच्च स्तरीय जाँच भी करा ली
मामले मार्ग कायम कर बॉडी पोस्ट मार्टम के लिए भेज प्रकरण विवेचना में लिया गया
मामला तब और सनसनी खेज हो गया जब पोस्ट मार्टम के दोरान यह बात सामने आए की दरअसल वह कुत्ता नही सियार था जो कुत्ते की खाल पहन कर ग्रुप में शामिल हो गया था
बहरहाल मामला प्रतिष्टा का बन गया था
साम दाम दंड भेद से जैसे तेसे सियार वाली बात दबाने ग्रुप लीडर ने जोर लगाया और बाकि बातो को दबाने में तो ग्रुप तत्पर था ही
अब शेरो की वारदात में कोन गवाही देकर बुरा बने
लिहाजा मौत पुरी तरह से दुर्घटना साबित हुई और केस फाइल खात्मे में डाल दी गई
मुझे महसूस हुआ की अब जंगल में भी कानून शहर की तरह तरक्की कर रहा है
एक बात और सुना है ग्रुप में इन दिनों एक और कुत्ता भाग्य अजमा रहा है और लीडर का खास बनने प्रयास रत है

मंगलवार, दिसंबर 16, 2008

चिंतन

मेरा एक डॉक्टर मित्र इन दिनों खासा परेशान हे
एक भावी मंत्री का वो कुछ दिनों से महमान है

मेहमान नवाजी का जो कारण उसने बताया
सच कहू मेरा सर बुरी तरह चकराया

उसने बताया नेताजी इस बार अपने विभाग को लेकर नही
बल्कि अपनी 'जीत' से परशान है

यह बात मेरी समझ में न आई
तब उसने अन्दर की बात बतलाई

वह बोला यार नेताजी पिछली बार विभाग मिलते ही जम कर गर्राए थे
खुशी इतनी थी की कई दिन होटल,बार,फार्म हाउस में बिताये थे

पर यह बात कुछ विघ्न संतोषी न पचा पाए थे
उनके किस्से आला कमान तक ही नही, अखबार की सुर्खियों में भी आए थे

यह सब देख ख़ुद को सँभालने की बजाये वे अंतिम अवसर समझ बिगड़ते चले गए
हुआ ये की खुल्ला खेल फर्रुखाबादी की तर्ज पर दिन दुने रात चौगुने बढ़ते गए

इस सब के बावजूद पार्टी ने टिकिट और जनता ने उन्हें वोट देने के लिए चुन लिया
मानो मेरी छाती पर मूंग दर दिया

अब नेताजी अपने जीत के कारणों पर पल पल बीपी बढाकर चिंतन कर रहे है
अपने गम मैं मुझे भी मय ओजरो के शामिल कर रहे है

उनका बीपी मेंटेन करने के चक्कर में अपनी सेहत बिगाड़ रहा हूँ
समझ में नही आता पार्टी और पब्लिक की गलती की सजा में क्यूँ पा रहा हूँ...

बुधवार, दिसंबर 10, 2008

अब जीत ही गए है तो समझें जिम्मेदारी ......

विधानसभा चुनाव में इस बार पूर्व विधान सभा को छोड़कर बाकि छेत्रो में अप्रत्याशित परिणाम तो देखने नही मिले लेकिन जिस दिन मत गड़ना चल रही थी उस दिन जीत के प्रति आश्वस्त उम्मीद वारो के चेहरों की उड़ती हवाईया बता रही थी की ये पब्लिक न कुछ भी कर सकती है ।
चाहे किसी उम्मीद वार के विरुध कितने ही आपराधिक प्रकरण क्यो न हो ,
चाहे जितनी ही नेगेटिव पब्लिसिटी क्यों न करली जाए,
आदर्श आचरण संहिता का उल्लंघन क्यों न हो,
पब्लिक को इन सब से कोई सरो कर नही
पब्लिक को हैप्पी एंडिंग पसंद आती है
बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो है
अपने पश्चिम के विधायक को ही ले लीजिये
अब जो है पूर्ण पारदर्शिता का डोर है जस्ट लायिक सरकारी नौकरी यू नो
सिपाही से लेकर अधिकारी तक बता देता है की साब में बिना लिए दिए तो यहाँ तक पंहुचा नही हूँ तो .........फिर आप स्वयं समझदार है
पब्लिक की समझा में अब करुप्शन की थेओरी भी चेंज हुई है
अब जो पैसे लेकर भी काम न कर वो होता है करप्ट
तो ठीक भी वोटर तो वोही है न जो अक्सर परदे के कुछ ही दूर राखी कुर्सियों पर बैठ कर फ़िल्म देखता है
एसी वाले यू नो टाइम नही निकल पाते इलेक्सन ,लाइन,वोटिंग,मार्क ओन् फिनगर बोरिंग न
तो ठीक है जो चुन रहे है सही चुन रहे
उन्हें अधिकार है और वो इसका उपयौग करना जानते है
मत गड़ना में आपकी सांसे क्यों न थमी हो पर अब स्वीकार करे की जनता ने आपको पुनः अवसर दिया है
और अब जीत ही गए है तो जिम्मेदारी समझें......................