एक दिन में गलती से कालेज में
जा बैठा था एक अजीब सी क्लास में
अपनों सा था लिबास पर रंग था भगवा जरा
तेज थी वक्ता की वाणी
सुर में भी एक ओज था
कह रहे थे सुन लो बंधू गांठ बंधो तुम इसे
"जिस समस्या पर हो नजर तमाम मुल्क की
जिस की खातिर कोई मरने मिटने को तैयार हो
जिस की खातिर एक भाई दुसरे से दूर ही रहे
जिस का नाम आते ही माँओ की पेशानी पर बल पड़े
वो समस्या "समस्या" नही हथियार है
हथियार भी ऐसा की समझलो तुम की ब्रह्मास्त्र है
वो समस्या हल न करना
हर चुनाव में भुनाएंगे
लोग भावनात्मक मुर्ख हैं
हम फिर से जीत जायेंगे
पाठशाला मैं जब ये सबक पढाया गया
क्रोध भी आया फिर तरस आया मुझे
और किसको जा कर के समझाता में अपनी बात को
बस वो सबक था आखिरी फिर पाठशाला अच्छी न लगी
और वो दिन था की मैंने पाठशाला छोड़ दी
पोल खोलक कविता!
जवाब देंहटाएंprateek sab kuchh kah rahe hain badhaaiyaan achchhee kavita ke liye
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