सोमवार, जुलाई 13, 2009

कुछ बात है की जूते पड़ते नही हमें भी ...

आज बहुत दिन बाद कुछ ऐसा देखा की बरबस ही हँसी आ ही गई
अपने शहर की परी रोड (अरे किसी ज़माने में कही जाती थी जब हम कॉलेज में थे) पर महिला पुलिस कुछ लोगो को कान पकड़ कर उठक बैठक लगवा रही थी
शोहदे थे बच्चियो को परेशां करने वाले
थोड़ा ठहरा हंसा लेकिन फिर सिहर भी गया की क्या इस उठक बैठक से सही में सुधर जायेंगे ये लोग
पिछले दौर की बात होती तो शायद मन विचलित न होता पर
आज के एमएम एस के दौर में न जाने क्यूँ मन घबरा ही जाता है
न जाने क्या सोच रहा है आज का यूथ जो महज दस बारह की उमर में जवान हो जाता है और मालती मीडिया एनाबल्ड मोबाइल की मांग करता है
आज शायद वो दौर नही जब एक बार कान पकड़ कर उठक बैठक लगाने वाला युवा जरुरी नही की ताउम्र महिला महाविद्यालयों के आस पास न दिखाई दे
आज के युवा का आदर्श थोड़ा सा बदला हुआ हे जो पीढी अब
शायद एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने गाना गाने वाले देवानंद को नही
जरा सा दिल में दे जगह तू गाने वाले इमरान हाश्मी और डर के किरण का राग आलापने वाले शाहरुख़ को अपना आदर्श मानती है जो कुछ अलग ही सोचते है ....
इन शोहदों को कैसे सुधारे ये विचार का प्रश्न है
उठक बैठक भी कभी कभी लगवाई जाती है और लड़किया है की इन्हे जूते भी नही मारती

बुधवार, अप्रैल 22, 2009

पाठशाला छोड़ दी

एक दिन में गलती से कालेज में
जा बैठा था एक अजीब सी क्लास में
अपनों सा था लिबास पर रंग था भगवा जरा
तेज थी वक्ता की वाणी
सुर में भी एक ओज था
कह रहे थे सुन लो बंधू गांठ बंधो तुम इसे
"जिस समस्या पर हो नजर तमाम मुल्क की
जिस की खातिर कोई मरने मिटने को तैयार हो

जिस की खातिर एक भाई दुसरे से दूर ही रहे
जिस का नाम आते ही माँओ की पेशानी पर बल पड़े
वो समस्या "समस्या" नही हथियार है
हथियार भी ऐसा की समझलो तुम की ब्रह्मास्त्र है
वो समस्या हल न करना
हर चुनाव में भुनाएंगे
लोग भावनात्मक मुर्ख हैं
हम फिर से जीत जायेंगे
पाठशाला मैं जब ये सबक पढाया गया
क्रोध भी आया फिर तरस आया मुझे
और किसको जा कर के समझाता में अपनी बात को
बस वो सबक था आखिरी फिर पाठशाला अच्छी न लगी
और वो दिन था की मैंने पाठशाला छोड़ दी

पाठशाला छोड़ दी

गुरुवार, फ़रवरी 12, 2009

कमबख्त जिन्दगी

बिल्कुल किसी दिल फैंक हसीना की तरह है
कमबख्त जिन्दगी है कि हाथ छोड़ती नही

कोशिश जरूर की पर अब लगने लगा मुश्किल
बेडिया है ये समाज की कि टूटती नही

बहुत देख चुके है और अब नहीं ख्वाहिश
चेहरे वही है पुराने कोई बदला कही नही

अब साथ में जो है तो कमबख्त यही है अच्छी
अब "जिन्दगी" है मेरी कोई और तो नहीं

रविवार, जनवरी 04, 2009

जंगल का कानून

कुछ दिनों से वाइल्ड लाइफ के प्रति अचानक रुझान बढ़ गया है या ये कह सकते है की अचानक मेरा जंगल तबादला हो गया हो
मैंने कहा डिस्कवरी में तो बहुत देखा है थोड़ा रूबरू होकर भी वाइल्ड लाइफ का लुत्फ़ उठा लिया जाए
हुआ ये की में बहुत दिनों से वाच कर रहा था के कान्हा के शेरो के एक समूह में एक ग्रुप लीडर टाइप के शेर ने अचानक एक कुत्ते को ग्रुप में शामिल कर लिया
यही नही अब शेर उसे दहाड़ने, शिकार, मेनेजमेंट के फंडे भी सिखाने लगा
कुछ दिनों में कुत्ते ने सब कुछ एसे फोलो किया की मानो
जनम से ही शेर हो
अब वह लगभग भूल चुका था की वह तो कुत्ता है
अब इम्तिहान की घड़ी आई
कुछ दिनों तक लीडर कुत्ते को ग्रुप में ज़माने पल पल साथ रहा
जहा कुत्ता गलती करता और विरोध होता तो लीडर दहाड़ मर कर सब को शांत करा देता
अब एक दिन लीडर ने सोचा की अब कुत्ता पुरी तारह से घुल मिल गया है और अब वह आराम से उस पर भरोसा कर सकता है
लेकिन दूसरी तरफ़ असंतुष्ट शेरो के दिमाग में कुछ और चल रहा था
अब लीडर शेर ने ख़ुद आराम से बैठकर कुत्ते को अपना प्रतिनिधि बनाकर ग्रुप के साथ शिकार पर भेजना शुरू किया
इस तरफ़ शेर ने आराम से कुत्ते को ग्रुप के साथ शिकार करने भेजा
और उस तरफ़ कुछ ही दिनों बाद ग्रुप नम आँखों के साथ इस दुःख भरी ख़बर के साथ लौटा की माननीय प्रतिनिधि जी अब नही रहे
लीडर शेर ने तब तो कल का ग्रास बने अपने प्रति निधि की मौत पर सब से मौन करवा कर शोक व्यक्त करा लिया
लेकिन बाद में मामले की उच्च स्तरीय जाँच भी करा ली
मामले मार्ग कायम कर बॉडी पोस्ट मार्टम के लिए भेज प्रकरण विवेचना में लिया गया
मामला तब और सनसनी खेज हो गया जब पोस्ट मार्टम के दोरान यह बात सामने आए की दरअसल वह कुत्ता नही सियार था जो कुत्ते की खाल पहन कर ग्रुप में शामिल हो गया था
बहरहाल मामला प्रतिष्टा का बन गया था
साम दाम दंड भेद से जैसे तेसे सियार वाली बात दबाने ग्रुप लीडर ने जोर लगाया और बाकि बातो को दबाने में तो ग्रुप तत्पर था ही
अब शेरो की वारदात में कोन गवाही देकर बुरा बने
लिहाजा मौत पुरी तरह से दुर्घटना साबित हुई और केस फाइल खात्मे में डाल दी गई
मुझे महसूस हुआ की अब जंगल में भी कानून शहर की तरह तरक्की कर रहा है
एक बात और सुना है ग्रुप में इन दिनों एक और कुत्ता भाग्य अजमा रहा है और लीडर का खास बनने प्रयास रत है

मंगलवार, दिसंबर 16, 2008

चिंतन

मेरा एक डॉक्टर मित्र इन दिनों खासा परेशान हे
एक भावी मंत्री का वो कुछ दिनों से महमान है

मेहमान नवाजी का जो कारण उसने बताया
सच कहू मेरा सर बुरी तरह चकराया

उसने बताया नेताजी इस बार अपने विभाग को लेकर नही
बल्कि अपनी 'जीत' से परशान है

यह बात मेरी समझ में न आई
तब उसने अन्दर की बात बतलाई

वह बोला यार नेताजी पिछली बार विभाग मिलते ही जम कर गर्राए थे
खुशी इतनी थी की कई दिन होटल,बार,फार्म हाउस में बिताये थे

पर यह बात कुछ विघ्न संतोषी न पचा पाए थे
उनके किस्से आला कमान तक ही नही, अखबार की सुर्खियों में भी आए थे

यह सब देख ख़ुद को सँभालने की बजाये वे अंतिम अवसर समझ बिगड़ते चले गए
हुआ ये की खुल्ला खेल फर्रुखाबादी की तर्ज पर दिन दुने रात चौगुने बढ़ते गए

इस सब के बावजूद पार्टी ने टिकिट और जनता ने उन्हें वोट देने के लिए चुन लिया
मानो मेरी छाती पर मूंग दर दिया

अब नेताजी अपने जीत के कारणों पर पल पल बीपी बढाकर चिंतन कर रहे है
अपने गम मैं मुझे भी मय ओजरो के शामिल कर रहे है

उनका बीपी मेंटेन करने के चक्कर में अपनी सेहत बिगाड़ रहा हूँ
समझ में नही आता पार्टी और पब्लिक की गलती की सजा में क्यूँ पा रहा हूँ...

बुधवार, दिसंबर 10, 2008

अब जीत ही गए है तो समझें जिम्मेदारी ......

विधानसभा चुनाव में इस बार पूर्व विधान सभा को छोड़कर बाकि छेत्रो में अप्रत्याशित परिणाम तो देखने नही मिले लेकिन जिस दिन मत गड़ना चल रही थी उस दिन जीत के प्रति आश्वस्त उम्मीद वारो के चेहरों की उड़ती हवाईया बता रही थी की ये पब्लिक न कुछ भी कर सकती है ।
चाहे किसी उम्मीद वार के विरुध कितने ही आपराधिक प्रकरण क्यो न हो ,
चाहे जितनी ही नेगेटिव पब्लिसिटी क्यों न करली जाए,
आदर्श आचरण संहिता का उल्लंघन क्यों न हो,
पब्लिक को इन सब से कोई सरो कर नही
पब्लिक को हैप्पी एंडिंग पसंद आती है
बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो है
अपने पश्चिम के विधायक को ही ले लीजिये
अब जो है पूर्ण पारदर्शिता का डोर है जस्ट लायिक सरकारी नौकरी यू नो
सिपाही से लेकर अधिकारी तक बता देता है की साब में बिना लिए दिए तो यहाँ तक पंहुचा नही हूँ तो .........फिर आप स्वयं समझदार है
पब्लिक की समझा में अब करुप्शन की थेओरी भी चेंज हुई है
अब जो पैसे लेकर भी काम न कर वो होता है करप्ट
तो ठीक भी वोटर तो वोही है न जो अक्सर परदे के कुछ ही दूर राखी कुर्सियों पर बैठ कर फ़िल्म देखता है
एसी वाले यू नो टाइम नही निकल पाते इलेक्सन ,लाइन,वोटिंग,मार्क ओन् फिनगर बोरिंग न
तो ठीक है जो चुन रहे है सही चुन रहे
उन्हें अधिकार है और वो इसका उपयौग करना जानते है
मत गड़ना में आपकी सांसे क्यों न थमी हो पर अब स्वीकार करे की जनता ने आपको पुनः अवसर दिया है
और अब जीत ही गए है तो जिम्मेदारी समझें......................

शनिवार, नवंबर 29, 2008

तुम क्या समझे शायर हूँ ?

यूँही खींची चार लकीरें
तुम क्या समझे ?
मैं शायर हूँ।
यूँही खींचे धागे दिलो के
तुम क्या समझे
शायर हूँ
लिखने को जी चाह रहा था
लिख दी बस जी भर कर के
पढ़ कर अच्छी लगे
मुझे क्या ?
ये न कहना
शायर हूँ ..............

बुधवार, नवंबर 19, 2008

चुनाव जीतने जादू

"जादू " एक एसा शब्द है जिसका नाम जुबान पर आते ही जिज्ञासा होना स्वभाविक सी बात है । लेकिन विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए जादू ....थोड़ा सा अटपटा जरुर लगता है ..
आज शहर की पश्चिम विधान सभा के एक प्रत्याशी के कार्यालय के सामने एक जादूगर तमाशा दिखा रहा था
एक पल में उसकी तख्ती में एक पार्टी के चुनाव चिन्ह की जगह दूसरा आ जा रहा था
ठीक उसी तरह से ........जैसे आवाम तख्त पलट दिया करती है ।
लोगो से सुना तो थोड़ा पहले अटपटा जरुर लगा
लेकिन फिर ठीक भी कम से कम इस प्रत्याशी ने लोगो के मन में नए सपने तो दिए जो किसी का कल शहर आए एक मसखरे की तरह मजाक नही उडा रहे थे ..........

शनिवार, नवंबर 15, 2008

और मैंने थप्पड़ मार दिया ...........

बात उन दिनों की है जब मई महाराष्ट्र स्कूल में क्लास मैं पढता था
स्कूल की गैलरी में चीप लगी हुई थी दोपहर की रीसेस हुई थी में अपने दोस्तों के साथ वहीं खेल रहा था
अचानक मेरा हाथ एक सीनियर को लग गया
अब धोके से ही लगा था। मुझसे हाईट में कुछ ज्यादा उस सीनीअर ने मेरे गले में चपत लगानी शुरू कर दी
थोडी देर तो मैंने बर्दाश्त किया लेकिन फिर हिम्मत बाँध कर उसे एक जमके रहपट लगाया और भगा
मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था क्या करू
और में भाग कर सीधे प्रिंसिपल रूम में चला गया और उनसे पूरी बात बता दी
प्रिंसिपल ने उसी लड़के को बुलाकर फटकार लगाई और मेरी जान में जान आई ...........

शुक्रवार, नवंबर 14, 2008

टी आई ने कहा -गहने दिखाकर चलोगी तो लुटोगी ही न... ..........

आज दोपहर की बात है मदन महल थाना , अरुण डेरी के पास एक महिला के गले से मोटर साइकिल सवार दो लुटेरो ने दो तोले की सोने की चैन खींच ली । रोड से घर की तरफ़ ही जा रहा था तभी पीड़ित महिला और पुलिस की भीड़ देख कर में रुक गया। टी आई एक कार से टिके खडे थे और बाकि सिपाही और अन्य स्टाफ प्रत्यक्ष दर्शियो से चर्चा कर रहे थे। मैंने रुक कर पूछा तो टी आई साहब ने घटना तो बताई बाद में महिला की तरफ़ देखते हुए यहाँ कहने से भी नही चुके की यार ये महिलाये भी न गहने दिखा दिखा कर चलने की क्या जरुरत थी . अब गहने दिखाकर चलेगी तो लुटेगी ही न................
कल और आज में शहर में चैन स्नेचिंग की तीन घटनाये हुई ..............और पुलिस की विवेचना जारी है

बुधवार, नवंबर 12, 2008

हवायें

उस तरफ तेज हवायें है
कोई कहता था
वहां से लौट न पाओगे
कोई कहता था
आज जाना वो यकीनन
सच कहता था.....
एक ही बात कोई शख्स बार बार कहे
ठहर के सुन लेने मैं
कोई हर्ज नही होता है

चलानी नही आती है तो.............

छोटी सी घटना है लेकिन असर गहरा कर गई
दरअसल रोज की तरह में जब ऑफिस जा रहा था तो अपने तीन पत्ति फुहारे पर कुछ देर को ट्राफिक जाम से दो चार होना पड़ा। सामने से एक सूमो के आगे एक कार फँस गई । सूमो में एक पार्टी के झंडे लगे थे और कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता (यू नो ग्रास रूट लेवल टाइप ) बैठे थे जबकि कार में एक सामान्य परिवार नजर आया। संभवतः इसी धनतेरस को गाड़ी ली थी। अब सूमो के सामने बेचार कार चालक को टर्न करने में देर क्या हो गई सूमो चालक ने फब्ती कस ही दी की
"चलानी नही आती तो क्यो चला रहे हैं ....."
परिवार के साथ बैठा कार चालक कुछ देर तो कुछ सोच कर शांत रहा लेकिन सूमो निकलते ही कुछ यूँ बोला की मुझे सुनाई दे ही गया
उसने बस इतना कहा की "ये भी तो ढंग से नही चला पाते अब देखते है न !"

शनिवार, नवंबर 08, 2008

दरिन्दे की हवस और सूना चूल्हा


"पत्थर उबालती रही एक माँ तमाम रात
बच्चे फरेब खा के चटाई पे सो गए"
बहुत पहले सुनी थी ये शायरी लेकिन जब हकीकत देखी तो सच बताऊ रोंगटे खड़े हो गए। जबलपुर के खमरिया के मतामर गांव में २ नवम्बर को एक महिला के साथ हुई एक घटना ने उसके पुरे परिवार को झकझोर दिया।फोटोग्राफर गगन के इस फोटो में दिखाई दे रहा चूल्हा दरअसल फिछले
पांच दिनों से नही जला था। कारन यह था की जिस महिला के साथ घटना हुई उस पर ही पुरे परिवार की जम्मेदारी थी। पांच दिनों से न वह मजदूरी करने गई न घर का चूल्हा जला था । थैंक्स तो जबलपुर कलेक्टर हरिरंजन राव जिन्होंने घटना की जानकारी मिलते ही न केवल उस महिला को हॉस्पिटल पहुचवाया बल्कि परिवार को शाशन से आर्थिक मदद भी दिलाई। यहाँ ये बताना जरुरी है की महिला पर उसके पांच बच्चो के साथ वृद्ध ससुर की भी जिम्मेदारी है और एक दरिन्दे ने उसे २ नवम्बर को अपनी हवस का शिकार बना लिया था.

रविवार, नवंबर 02, 2008

भटकाव

इतना भटका हूँ की
की मुझसे रास्ते घबराते है
फिर भी मंजिल नजर नहीं आती
चराग वो है जो कम से कम रौशनी तो दे
महज धुए से कोई बात बन नहीं पाती

बुधवार, अक्टूबर 29, 2008

तस्वीरे

आज अचानक नज़र गई कुछ तस्वीरो पर
मेरी ही थी
पर शायद अरसे पहले की
तस्वीरे थी पर न जाने क्या बोल गई थी
तस्वीरो की बात समझ में तब आई जब
तस्वीरो के बाद सामने आइना था
सच है अब शायद में बदल गया हूँ

मंगलवार, अक्टूबर 28, 2008

जशने दिवाली है मनाये जूनून से
पर भूले न उसे भी जो कहीं सोता हो सुकून से
उन पर भी हो नजर
जो दिन भर फांकों से भी लड़े
उन पर भी जिनके बच्चे
अब भी भूके हैं खड़े
मैंने तो सोच रखा है दिवाली मनाऊ उनके भी साथ मे
छोटा सा एक दिया भी जिनको महताब सा लगे

बुधवार, अक्टूबर 22, 2008

चुनाव

चुने उनको जिन पर न हो अफ़सोस बाद में
चुने उनको जो बाद में हर वक्त साथ दे
मुनासिब है की आप व्यस्त हो मतदान के दिन भी
निकाले वक्त लेकिन किसी तरह वतन के वास्ते
चलो हम भी कुछ लिख कर देखते है
चलो फिर आसमा छु कर देखते है
दर्द कब तक हम सिर्फ़ देखेंगे
चलो महसूस कर के देखते है .........................