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शनिवार, अक्टूबर 22, 2011

ये बच्ची चाहती है कुछ और दिन मां को खुश रखना



ये बच्ची चाहती है कुछ और दिन मां को खुश रखना 
वो कपड़ों की मदद से अपनी लंबाई छिपाती है।
 मुहाजिरनामा और मां जैसी पुस्तकों के रचियता मुनव्वर राणा के इस शेर ने उनके सुनने वालों के चेहरों पर रौनक ला दी। मौका था १७ अक्तूबर की रात अंजुमन इस्लामिया में जबलपुर कौमी एकता कमेटी द्वारा आयोजित ऑल इंडिया मुशायरा कार्यक्रम का। राणा के शेर 
कीड़े तमाम रिश्तों के शरबत में आ गए 
 जब से खराब लोग सियासत में आ गए,
भी श्रोताओं ने काफी पसंद किया...
राणा  ने मुहाजिरनामा के शेर सुनाकर दर्शकों की आंखे नम कर दी जिसमें उन्होंने कहा कि
 मां को छोड़ आए महलिया साथ लाए हैं कि सोना छोड़ आए हम पीतल लेके आए हैं। 
 अपनी खुदगर्जी पर अब भी रंज है हमको बेटा साथ ले आए भतीजा छोड़ आए हैं।
 स्वास्थ्य की वजह से जल्द मंच से रवाना हुए मुनव्वर ने पूरी महफिल का आकर्षण रहे। शेरों शायरी का दौर देर रात तक जलता रहा। लेकिन सभी के दिलों में राणा गहरी छाप छोड़ गए। मुनव्वर राणा के बाद मुल्क के नामवर शायर राहत इंदौरी ने देर रात मंच संभाला। उनके शेर
 ये सहारा जो नहीं हो तो परेशां हो जाएं
 मुश्किले जान ही ले लें अगर आसां हो जाएं।

 ये जो कुछ लोग फरिश्तों से बने फिरते हैं
 मेरे हत्थे कभी चढ़ जाएं तो इसां हो जाएं 

मैं वो दरिया हूं हर बूंद भंवर है जिसकी 
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा कर के।

 
मुंतजिर हूं कि सितारों की जरा आंख लगे 
चांद को छत पर बुला लूगा इशारा करके।
 कम समय तक मंच पर रहे राहत के हर एक शेर पर तालियां और वाह-वाह का शोर गूंज रहा था। इस दौरान जौहर कानपुरी, रईस अंसारी, मंजर भोपाली, अतुल अजनबी, तनवीर गाजी, डा अंजुम बाराबंकी,अतुल अदनवी, ग्वालियर, असर सिद्दीकी, डा. नसीम निखत, शबाना शबनम, शबीना अदील सहित कई शायरों ने भी अपने कलाम पेश किए।
 इन शेरों की भी सराहना
 तुम्हारा चेहरा चरागों में कौन रखता है 
मेरी तरह तुम्हें आंखों में कौन रखता है।
 शबीना अदीब कानपुरी।
खुदाए बरतर नए बरस में बस एक काम कर दे 
तू अपनी दुनिया से जालिमों का हर एक किस्सा तमाम कर दे।
नसीम निखत
 जुल्म के सारे चिरागों को बुझाकर देखो
अपनी किस्मत से बहुत दूर अंधेरा होगा। 
 जबलपुर के अनवर निजामी
कि कोई भी रोक न पाता गुजर गया होता
मेरा नसीब मोहब्बत में संवर गया होता
न आई होती गर बेगम मेरी अदावत को,
मैं अस्पताल की नर्सों पर मर गया होता।
पप्पू लखनवी