मेरा एक डॉक्टर मित्र इन दिनों खासा परेशान हे
एक भावी मंत्री का वो कुछ दिनों से महमान है
मेहमान नवाजी का जो कारण उसने बताया
सच कहू मेरा सर बुरी तरह चकराया
उसने बताया नेताजी इस बार अपने विभाग को लेकर नही
बल्कि अपनी 'जीत' से परशान है
यह बात मेरी समझ में न आई
तब उसने अन्दर की बात बतलाई
वह बोला यार नेताजी पिछली बार विभाग मिलते ही जम कर गर्राए थे
खुशी इतनी थी की कई दिन होटल,बार,फार्म हाउस में बिताये थे
पर यह बात कुछ विघ्न संतोषी न पचा पाए थे
उनके किस्से आला कमान तक ही नही, अखबार की सुर्खियों में भी आए थे
यह सब देख ख़ुद को सँभालने की बजाये वे अंतिम अवसर समझ बिगड़ते चले गए
हुआ ये की खुल्ला खेल फर्रुखाबादी की तर्ज पर दिन दुने रात चौगुने बढ़ते गए
इस सब के बावजूद पार्टी ने टिकिट और जनता ने उन्हें वोट देने के लिए चुन लिया
मानो मेरी छाती पर मूंग दर दिया
अब नेताजी अपने जीत के कारणों पर पल पल बीपी बढाकर चिंतन कर रहे है
अपने गम मैं मुझे भी मय ओजरो के शामिल कर रहे है
उनका बीपी मेंटेन करने के चक्कर में अपनी सेहत बिगाड़ रहा हूँ
समझ में नही आता पार्टी और पब्लिक की गलती की सजा में क्यूँ पा रहा हूँ...
यह ब्लाग उन स्नेही वरिष्ठ जनों को सप्रेम समर्पित है जिन्होंने मुझे ब्लाग पत्रकार बनने प्रेरित किया, यहां आप पढ़ सकते हैं खबरें, आलोचनाएं, प्रशंसा, समसामयिकी, कविताएं भी, टोटली जो अखबार या कहीं और नहीं लिख सकता सारी भड़ास यहीं निकलेगी, आपका स्वागत है।
मंगलवार, दिसंबर 16, 2008
बुधवार, दिसंबर 10, 2008
अब जीत ही गए है तो समझें जिम्मेदारी ......
विधानसभा चुनाव में इस बार पूर्व विधान सभा को छोड़कर बाकि छेत्रो में अप्रत्याशित परिणाम तो देखने नही मिले लेकिन जिस दिन मत गड़ना चल रही थी उस दिन जीत के प्रति आश्वस्त उम्मीद वारो के चेहरों की उड़ती हवाईया बता रही थी की ये पब्लिक न कुछ भी कर सकती है ।
चाहे किसी उम्मीद वार के विरुध कितने ही आपराधिक प्रकरण क्यो न हो ,
चाहे जितनी ही नेगेटिव पब्लिसिटी क्यों न करली जाए,
आदर्श आचरण संहिता का उल्लंघन क्यों न हो,
पब्लिक को इन सब से कोई सरो कर नही
पब्लिक को हैप्पी एंडिंग पसंद आती है
बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो है
अपने पश्चिम के विधायक को ही ले लीजिये
अब जो है पूर्ण पारदर्शिता का डोर है जस्ट लायिक सरकारी नौकरी यू नो
सिपाही से लेकर अधिकारी तक बता देता है की साब में बिना लिए दिए तो यहाँ तक पंहुचा नही हूँ तो .........फिर आप स्वयं समझदार है
पब्लिक की समझा में अब करुप्शन की थेओरी भी चेंज हुई है
अब जो पैसे लेकर भी काम न कर वो होता है करप्ट
तो ठीक भी वोटर तो वोही है न जो अक्सर परदे के कुछ ही दूर राखी कुर्सियों पर बैठ कर फ़िल्म देखता है
एसी वाले यू नो टाइम नही निकल पाते इलेक्सन ,लाइन,वोटिंग,मार्क ओन् फिनगर बोरिंग न
तो ठीक है जो चुन रहे है सही चुन रहे
उन्हें अधिकार है और वो इसका उपयौग करना जानते है
मत गड़ना में आपकी सांसे क्यों न थमी हो पर अब स्वीकार करे की जनता ने आपको पुनः अवसर दिया है
और अब जीत ही गए है तो जिम्मेदारी समझें......................
चाहे किसी उम्मीद वार के विरुध कितने ही आपराधिक प्रकरण क्यो न हो ,
चाहे जितनी ही नेगेटिव पब्लिसिटी क्यों न करली जाए,
आदर्श आचरण संहिता का उल्लंघन क्यों न हो,
पब्लिक को इन सब से कोई सरो कर नही
पब्लिक को हैप्पी एंडिंग पसंद आती है
बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो है
अपने पश्चिम के विधायक को ही ले लीजिये
अब जो है पूर्ण पारदर्शिता का डोर है जस्ट लायिक सरकारी नौकरी यू नो
सिपाही से लेकर अधिकारी तक बता देता है की साब में बिना लिए दिए तो यहाँ तक पंहुचा नही हूँ तो .........फिर आप स्वयं समझदार है
पब्लिक की समझा में अब करुप्शन की थेओरी भी चेंज हुई है
अब जो पैसे लेकर भी काम न कर वो होता है करप्ट
तो ठीक भी वोटर तो वोही है न जो अक्सर परदे के कुछ ही दूर राखी कुर्सियों पर बैठ कर फ़िल्म देखता है
एसी वाले यू नो टाइम नही निकल पाते इलेक्सन ,लाइन,वोटिंग,मार्क ओन् फिनगर बोरिंग न
तो ठीक है जो चुन रहे है सही चुन रहे
उन्हें अधिकार है और वो इसका उपयौग करना जानते है
मत गड़ना में आपकी सांसे क्यों न थमी हो पर अब स्वीकार करे की जनता ने आपको पुनः अवसर दिया है
और अब जीत ही गए है तो जिम्मेदारी समझें......................
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