रविवार, अक्तूबर 27, 2013

"जात ही पूछो साधू की "


विवेचना का राष्ट्रीय नाट्य समारोह संपन्न


जातिवाद पर प्रहार करते नाटक ‘जात ही पूछा साधु की ’ के साथ विवेचना का 20 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह संपन्न हुआ। तरंग आॅडिटोरियम में आयोजित किए जा रहे समारोह के अंतिम दिन रविवार को अंक मुंबई के कलाकारों द्वारा स्व. विजय तेंदुलकर के इस नाटक का मंचन किया गया। नाटक के निर्देशक स्व. दिनेश ठाकुर थे। उनके निदेर्शन में इस नाटक के हिन्दी और मराठी के संस्करण को काफी सराहना मिल चुकी है। इस नाटक ने दर्शकों को हंसाते हंसाते जातिवाद पर प्रहार कर ही दिया।
नाटक पिछड़ी जाति के बेरोजगार युवक महीपत बाभ्ररूवाहन के इर्द गिर्द घूमती है। जो थर्ड डिवीजन से हिन्दी एवं साहित्य में एमए किसी तरह पास कर लेता है हिन्दी लेक्चरार के पद के लिए अनेक जगह आवेदन करने के बाद भी उसे इंटरव्यू के लिए बुलाव इसलिए आता है कि अपनी जाति में सिर्फ वही एमए पास है। इसी बीच उसे एक ग्रामीण कॉलेज में नौकरी मिल जाती है क्योंकि उस पद के लिए वह अकेला उम्मीदवार था। कॉलेज की चेयरमैन की मूर्ख भांजी को भी कुछ दिन बाद हिन्दी लैकचरार के रूप में नियुक्त कर लिया जाता है। इसी के साथ महीपत के खिलाफ घटनाओं का दौर शुरु हो जाता है और पूरे समय वह अपनी नौकरी बचाने जुगाड़ में लगा रहता है। महीपत चेयरमैन की भांजी नलिनि से इश्क लड़ाने और विवाह की योजना भी बनाता है। अंतत: वह सफल नहीं हो पाता और उसे नौकरी से निकाले जाने के बाद फिर से वह शिक्षित बेरोजगार हो जाता है।
इस नाटक में अमन गुप्ता, एससी माखीजा, बिन्नी मरीवाला, रोहित चौधरी, प्रवाल मजूमदार, कुमकुम मजूमदार, प्रशांत, संदीप जय, सुमित की आदकारी ने संभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
नाटक के अंत में अंक प्रभारी प्रीता माथुर का हरि भटनागर की पेंटिंग स्मृति चिन्ह के रूप में प्रदान की गई। मुंबई के कलाकारों का स्वागत मनु तिवारी, गोपाली चंद्रमोहन, राजकुमार शुक्ला, अर्पिता मालपाणी एवं अंजली दुबे ने किया। इस दौरान विवेचना के हिमांशू राय, बांके बिहारी ब्यौहार, बसंत काशीकर, तपन बैनर्जी आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।

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