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रविवार, नवंबर 02, 2008
भटकाव
इतना भटका हूँ की की मुझसे रास्ते घबराते है फिर भी मंजिल नजर नहीं आती चराग वो है जो कम से कम रौशनी तो दे महज धुए से कोई बात बन नहीं पाती
raste vohi hai jise per bhatka jata hai cherag vahi hai jo dhua deta hai manjeel vahi jo dekhi nahi deti hai per kis liye pareshan ho.. dharya hona chaiye sabkuch asan hai..
raste vohi hai jise per bhatka jata hai
जवाब देंहटाएंcherag vahi hai jo dhua deta hai
manjeel vahi jo dekhi nahi deti hai
per kis liye pareshan ho..
dharya hona chaiye sabkuch asan hai..