यूँही खींची चार लकीरें
तुम क्या समझे ?
मैं शायर हूँ।
यूँही खींचे धागे दिलो के
तुम क्या समझे
शायर हूँ
लिखने को जी चाह रहा था
लिख दी बस जी भर कर के
पढ़ कर अच्छी लगे
मुझे क्या ?
ये न कहना
शायर हूँ ..............
यह ब्लाग उन स्नेही वरिष्ठ जनों को सप्रेम समर्पित है जिन्होंने मुझे ब्लाग पत्रकार बनने प्रेरित किया, यहां आप पढ़ सकते हैं खबरें, आलोचनाएं, प्रशंसा, समसामयिकी, कविताएं भी, टोटली जो अखबार या कहीं और नहीं लिख सकता सारी भड़ास यहीं निकलेगी, आपका स्वागत है।
शनिवार, नवंबर 29, 2008
बुधवार, नवंबर 19, 2008
चुनाव जीतने जादू
"जादू " एक एसा शब्द है जिसका नाम जुबान पर आते ही जिज्ञासा होना स्वभाविक सी बात है । लेकिन विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए जादू ....थोड़ा सा अटपटा जरुर लगता है ..
आज शहर की पश्चिम विधान सभा के एक प्रत्याशी के कार्यालय के सामने एक जादूगर तमाशा दिखा रहा था
एक पल में उसकी तख्ती में एक पार्टी के चुनाव चिन्ह की जगह दूसरा आ जा रहा था
ठीक उसी तरह से ........जैसे आवाम तख्त पलट दिया करती है ।
लोगो से सुना तो थोड़ा पहले अटपटा जरुर लगा
लेकिन फिर ठीक भी कम से कम इस प्रत्याशी ने लोगो के मन में नए सपने तो दिए जो किसी का कल शहर आए एक मसखरे की तरह मजाक नही उडा रहे थे ..........
आज शहर की पश्चिम विधान सभा के एक प्रत्याशी के कार्यालय के सामने एक जादूगर तमाशा दिखा रहा था
एक पल में उसकी तख्ती में एक पार्टी के चुनाव चिन्ह की जगह दूसरा आ जा रहा था
ठीक उसी तरह से ........जैसे आवाम तख्त पलट दिया करती है ।
लोगो से सुना तो थोड़ा पहले अटपटा जरुर लगा
लेकिन फिर ठीक भी कम से कम इस प्रत्याशी ने लोगो के मन में नए सपने तो दिए जो किसी का कल शहर आए एक मसखरे की तरह मजाक नही उडा रहे थे ..........
शनिवार, नवंबर 15, 2008
और मैंने थप्पड़ मार दिया ...........
बात उन दिनों की है जब मई महाराष्ट्र स्कूल में क्लास ९ मैं पढता था
स्कूल की गैलरी में चीप लगी हुई थी दोपहर की रीसेस हुई थी में अपने दोस्तों के साथ वहीं खेल रहा था
अचानक मेरा हाथ एक सीनियर को लग गया
अब धोके से ही लगा था। मुझसे हाईट में कुछ ज्यादा उस सीनीअर ने मेरे गले में चपत लगानी शुरू कर दी
थोडी देर तो मैंने बर्दाश्त किया लेकिन फिर हिम्मत बाँध कर उसे एक जमके रहपट लगाया और भगा
मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था क्या करू
और में भाग कर सीधे प्रिंसिपल रूम में चला गया और उनसे पूरी बात बता दी
प्रिंसिपल ने उसी लड़के को बुलाकर फटकार लगाई और मेरी जान में जान आई ...........
स्कूल की गैलरी में चीप लगी हुई थी दोपहर की रीसेस हुई थी में अपने दोस्तों के साथ वहीं खेल रहा था
अचानक मेरा हाथ एक सीनियर को लग गया
अब धोके से ही लगा था। मुझसे हाईट में कुछ ज्यादा उस सीनीअर ने मेरे गले में चपत लगानी शुरू कर दी
थोडी देर तो मैंने बर्दाश्त किया लेकिन फिर हिम्मत बाँध कर उसे एक जमके रहपट लगाया और भगा
मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था क्या करू
और में भाग कर सीधे प्रिंसिपल रूम में चला गया और उनसे पूरी बात बता दी
प्रिंसिपल ने उसी लड़के को बुलाकर फटकार लगाई और मेरी जान में जान आई ...........
शुक्रवार, नवंबर 14, 2008
टी आई ने कहा -गहने दिखाकर चलोगी तो लुटोगी ही न... ..........
आज दोपहर की बात है मदन महल थाना , अरुण डेरी के पास एक महिला के गले से मोटर साइकिल सवार दो लुटेरो ने दो तोले की सोने की चैन खींच ली । रोड से घर की तरफ़ ही जा रहा था तभी पीड़ित महिला और पुलिस की भीड़ देख कर में रुक गया। टी आई एक कार से टिके खडे थे और बाकि सिपाही और अन्य स्टाफ प्रत्यक्ष दर्शियो से चर्चा कर रहे थे। मैंने रुक कर पूछा तो टी आई साहब ने घटना तो बताई बाद में महिला की तरफ़ देखते हुए यहाँ कहने से भी नही चुके की यार ये महिलाये भी न गहने दिखा दिखा कर चलने की क्या जरुरत थी . अब गहने दिखाकर चलेगी तो लुटेगी ही न................
कल और आज में शहर में चैन स्नेचिंग की तीन घटनाये हुई ..............और पुलिस की विवेचना जारी है
कल और आज में शहर में चैन स्नेचिंग की तीन घटनाये हुई ..............और पुलिस की विवेचना जारी है
बुधवार, नवंबर 12, 2008
हवायें
उस तरफ तेज हवायें है
कोई कहता था
वहां से लौट न पाओगे
कोई कहता था
आज जाना वो यकीनन
सच कहता था.....
एक ही बात कोई शख्स बार बार कहे
ठहर के सुन लेने मैं
कोई हर्ज नही होता है
कोई कहता था
वहां से लौट न पाओगे
कोई कहता था
आज जाना वो यकीनन
सच कहता था.....
एक ही बात कोई शख्स बार बार कहे
ठहर के सुन लेने मैं
कोई हर्ज नही होता है
चलानी नही आती है तो.............
छोटी सी घटना है लेकिन असर गहरा कर गई
दरअसल रोज की तरह में जब ऑफिस जा रहा था तो अपने तीन पत्ति फुहारे पर कुछ देर को ट्राफिक जाम से दो चार होना पड़ा। सामने से एक सूमो के आगे एक कार फँस गई । सूमो में एक पार्टी के झंडे लगे थे और कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता (यू नो ग्रास रूट लेवल टाइप ) बैठे थे जबकि कार में एक सामान्य परिवार नजर आया। संभवतः इसी धनतेरस को गाड़ी ली थी। अब सूमो के सामने बेचार कार चालक को टर्न करने में देर क्या हो गई सूमो चालक ने फब्ती कस ही दी की
"चलानी नही आती तो क्यो चला रहे हैं ....."
परिवार के साथ बैठा कार चालक कुछ देर तो कुछ सोच कर शांत रहा लेकिन सूमो निकलते ही कुछ यूँ बोला की मुझे सुनाई दे ही गया
उसने बस इतना कहा की "ये भी तो ढंग से नही चला पाते अब देखते है न !"
दरअसल रोज की तरह में जब ऑफिस जा रहा था तो अपने तीन पत्ति फुहारे पर कुछ देर को ट्राफिक जाम से दो चार होना पड़ा। सामने से एक सूमो के आगे एक कार फँस गई । सूमो में एक पार्टी के झंडे लगे थे और कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता (यू नो ग्रास रूट लेवल टाइप ) बैठे थे जबकि कार में एक सामान्य परिवार नजर आया। संभवतः इसी धनतेरस को गाड़ी ली थी। अब सूमो के सामने बेचार कार चालक को टर्न करने में देर क्या हो गई सूमो चालक ने फब्ती कस ही दी की
"चलानी नही आती तो क्यो चला रहे हैं ....."
परिवार के साथ बैठा कार चालक कुछ देर तो कुछ सोच कर शांत रहा लेकिन सूमो निकलते ही कुछ यूँ बोला की मुझे सुनाई दे ही गया
उसने बस इतना कहा की "ये भी तो ढंग से नही चला पाते अब देखते है न !"
शनिवार, नवंबर 08, 2008
दरिन्दे की हवस और सूना चूल्हा
"पत्थर उबालती रही एक माँ तमाम रात
बच्चे फरेब खा के चटाई पे सो गए"
बहुत पहले सुनी थी ये शायरी लेकिन जब हकीकत देखी तो सच बताऊ रोंगटे खड़े हो गए। जबलपुर के खमरिया के मतामर गांव में २ नवम्बर को एक महिला के साथ हुई एक घटना ने उसके पुरे परिवार को झकझोर दिया।फोटोग्राफर गगन के इस फोटो में दिखाई दे रहा चूल्हा दरअसल फिछले
पांच दिनों से नही जला था। कारन यह था की जिस महिला के साथ घटना हुई उस पर ही पुरे परिवार की जम्मेदारी थी। पांच दिनों से न वह मजदूरी करने गई न घर का चूल्हा जला था । थैंक्स तो जबलपुर कलेक्टर हरिरंजन राव जिन्होंने घटना की जानकारी मिलते ही न केवल उस महिला को हॉस्पिटल पहुचवाया बल्कि परिवार को शाशन से आर्थिक मदद भी दिलाई। यहाँ ये बताना जरुरी है की महिला पर उसके पांच बच्चो के साथ वृद्ध ससुर की भी जिम्मेदारी है और एक दरिन्दे ने उसे २ नवम्बर को अपनी हवस का शिकार बना लिया था.
रविवार, नवंबर 02, 2008
भटकाव
इतना भटका हूँ की
की मुझसे रास्ते घबराते है
फिर भी मंजिल नजर नहीं आती
चराग वो है जो कम से कम रौशनी तो दे
महज धुए से कोई बात बन नहीं पाती
की मुझसे रास्ते घबराते है
फिर भी मंजिल नजर नहीं आती
चराग वो है जो कम से कम रौशनी तो दे
महज धुए से कोई बात बन नहीं पाती