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शनिवार, नवंबर 29, 2008
तुम क्या समझे शायर हूँ ?
यूँही खींची चार लकीरें तुम क्या समझे ? मैं शायर हूँ। यूँही खींचे धागे दिलो के तुम क्या समझे शायर हूँ लिखने को जी चाह रहा था लिख दी बस जी भर कर के पढ़ कर अच्छी लगे मुझे क्या ? ये न कहना शायर हूँ ..............
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