मंगलवार, दिसंबर 16, 2008

चिंतन

मेरा एक डॉक्टर मित्र इन दिनों खासा परेशान हे
एक भावी मंत्री का वो कुछ दिनों से महमान है

मेहमान नवाजी का जो कारण उसने बताया
सच कहू मेरा सर बुरी तरह चकराया

उसने बताया नेताजी इस बार अपने विभाग को लेकर नही
बल्कि अपनी 'जीत' से परशान है

यह बात मेरी समझ में न आई
तब उसने अन्दर की बात बतलाई

वह बोला यार नेताजी पिछली बार विभाग मिलते ही जम कर गर्राए थे
खुशी इतनी थी की कई दिन होटल,बार,फार्म हाउस में बिताये थे

पर यह बात कुछ विघ्न संतोषी न पचा पाए थे
उनके किस्से आला कमान तक ही नही, अखबार की सुर्खियों में भी आए थे

यह सब देख ख़ुद को सँभालने की बजाये वे अंतिम अवसर समझ बिगड़ते चले गए
हुआ ये की खुल्ला खेल फर्रुखाबादी की तर्ज पर दिन दुने रात चौगुने बढ़ते गए

इस सब के बावजूद पार्टी ने टिकिट और जनता ने उन्हें वोट देने के लिए चुन लिया
मानो मेरी छाती पर मूंग दर दिया

अब नेताजी अपने जीत के कारणों पर पल पल बीपी बढाकर चिंतन कर रहे है
अपने गम मैं मुझे भी मय ओजरो के शामिल कर रहे है

उनका बीपी मेंटेन करने के चक्कर में अपनी सेहत बिगाड़ रहा हूँ
समझ में नही आता पार्टी और पब्लिक की गलती की सजा में क्यूँ पा रहा हूँ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें