जिला प्रशासन ने भी गिराई गाज
लम्हेटाघाट स्थित कथित संत आशाराम के आश्रम को जल्द ही धराशाई किया जा सकता है। आश्रम को न तोड़े जाने के संबंध में श्री योग वेदांत समिति ट्रस्ट द्वारा जिला दंडाधिकारी न्यायालय में लगाई गई आश्रम को न तोड़े जाने के संबंध में दायर याचिका को शुक्रवार को जिला दंडाधिकारी ने खारिज कर दिया।
गौरतलब है कि जिला दंडाधिकारी न्यायालय में यह प्रकरण आशाराम आश्रम की योगवेदांत समिति ट्रस्ट की ओर से सहदेव ठाकुर (31) ने मुख्य नगर पालिका अधिकारी, नगर परिषद भेड़ाघाट जबलपुर के 11 अक्टूबर को जारी आदेश क्रमांक 1052/अवैध निर्माण/न.प./13 के विरुद्ध मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 308 के तहत अपील आवेदन पत्र के प्रस्तुत किए जाने पर प्रारंभ किया गया।
प्रकरण का संक्षिप्त विवरण
जिला दंडाधिकारी द्वारा प्रकरण की सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आए।
- अपील कर्ता पक्ष द्वारा भवन निर्माण की अनुमति नगर परिषद से प्राप्त किए बिना नगर परिषद भेड़ाघाट में आशाराम आश्रम के भवन का निर्माण कराया जाना संज्ञान में आया। जिसके बाद नगर पालिक अधिकारी नगर परिषद भेड़ाघाट द्वारा आश्रम प्रबंधन को 17 सितंबर, 25 सितंबर एवं 1 अक्टूबर को पत्र भेज कर भवन निर्माण की स्वीकृति से संबंधित दस्तावेज पेश करने के लिए सूचना दी गई। इसके साथ ही सूचना में उल्लेखित किया गया कि अपीलार्थी पक्ष द्वारा गैर व्यपवर्तित (डाइवर्टेड) भूमि पर निर्माण कर नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 187 का उल्लंघन किया गया।
- इस आदेश से व्यथित होकर अपीलार्थी द्वारा माननीय उच्च न्यायालय मप्र जबलपुर में दायर याचिका डब्ल्यू पी क्रमांक 18858/2013 में पारित आदेश 22 अक्टूबर 2013 एवं रिव्यू पेटिशन क्रमांक 853/2013 में पारित आदेश 23 अक्टूबर में याचिकाकर्ता को मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 308 के तहत 25 अक्टूबर की शाम 4 बजे इस न्यायालय में अपील प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया गया।
इस तरह सुनवाइ के बाद आवेदन हुआ अस्वीकृत
माननीय न्यायाल के आदेश के पालन में आवेदन प्रस्तुत किए जाने पर यह प्रकरण 25 अक्टूबर को प्रारंभ कर ग्राह्यता एवं प्रारंभिक तक के लिए 30 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की गई। अपीलार्थी द्वारा अंतरिम राहत चाहते हुए धारा 309(3) के तहत मुख्य नगर पालिका अधिकारी के 11 अक्टूबर को जारी आदेश पर स्थगन प्रदान किए जाने के प्रस्तुत किया गया। नियत तिथि के साथ 31 अक्टूबर को अपीलार्थी अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्कों लिखित तर्कों पर विचार के बाद 1 नवंबर को आवेदन की सुनवाई के लिए ग्राह्य किया गया। प्रकरण में तर्क एवं बहस प्रस्तुत करने के लिए 6 नवंबर की तिथि निर्धारित की गई। ग्रामवासियों की ओर से आपत्तिकर्ता ओ.पी.यादव द्वारा प्रस्तुत अपील में आवश्यक पक्षकार बनाने जाने के लिए एक आवेदन भू राजस्व संहिता की धारा 32 एवं सहपठित धारा 151 व्य.प्र.सं. के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी, अनावेदक एवं आपत्तिकर्ताओं के तर्क एवं अंतिम बहस के लिए भी 6 नवंबर का दिन तय किया गया। इस तिथी को विस्तार से प्रस्तुत तर्कों का श्रवण किया गया। आपत्तिकर्ता को भी सुना गया। इस अपील में आवश्यक पक्षकार बनाने जाने के लिए कोई आवश्यकता प्रतीत न होने पर आवेदन अस्वीकार किया गया।
आश्रम प्रबंधन की ओर से की गई यह अपील
आश्रम प्रबंधन की ओर से अपालार्थी अधिवक्ता ने दो तर्क प्रस्तुत किए गए। जिनमें पहले तर्क में कहा गया कि मुख्य नगर पालिका अधिकारी अनीता यादव का पद लेखापाल है, जिन्हें मुख्य नगर पालिका अधिकारी के पद का प्रभार सौंपा गया है। इस प्रकार श्रीमति यादव का मुख्य नगर पालिका अधिकारी की शक्तियों का उपयोग करने का अधिकार न होने की बात कही गई। इस तर्क में श्रीमति यादव द्वारा मुख्य नगर पालिका अधिकारी की हैसियत से अधिनियम 1961 की धारा 187 के अंतर्गत जारी आदेश को निरस्त किए जाने का निवेदन किया गया।
दूसरे तर्क में कहा गया कि भवन निर्माण की अनुज्ञा प्राप्त किए बिना सन्निर्माण की स्थिति में अधिनियम 1961 की धारा 187 के तहत उक्त कृत्य के लिए समन (कंपाउंडिंग) पर विचार किये बिना धारा 187 (8क) के तहत भवन को ढ़हाने का आदेश न्यायोचित नहीं है।
इस तरह जांच के बाद खारिज की गई अपील
प्रकरण में अपीलार्थी एवं अनावेदक द्वार दी गई दलीलों के साथ सहपत्रों को परीक्षण किया गया। साथ ही मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 187, 306 एवं धारा 308 के प्रकाश में प्रकरण का परीशीलन किया गया। अपलार्थी अधिवक्ता दिए गए तर्को के संंबंध में पाया गया कि अनीत यादव को 28 जून को मुख्य नगर पालिका अधिकारी के पद का प्रभार सौंपा गया। संभागीय उपसंचालक नगरीय प्रशासन एवं विकास जबलपुर द्वारा आदेश में स्पष्ट उल्लेख पाया गया कि ‘शासन द्वारा अन्य किसी अधिकारी की मुख्य नगर पालिक अधिकारी के पद पर पदस्थापना करने तक श्रीमति यादव इस पद पर कार्य करेंगी। इस अवधि में उन्हें पूर्ण कालिक मुख्य नगर पालिका अधिकारी की समस्त शक्तियां व अधिकार प्राप्त होंगे।’ अधिनियम 1961 की धारा 306 के अुनसार मुख्य नगर पालिका अधिकारी द्वारा धारा 187 के तहत कार्रवाई की शक्तियां प्राप्त हैं। अत: अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत तर्क समाधान कारक न होने से जिला दंडाधिकारी ने अस्वीकृत कर दिया।
अपालार्थी के दूसरे तर्क पर जिला दंडाधिकारी ने इस बात पर विचार किया कि क्या इस प्रकरण में अधिनियम 1961 की धारा 187 क के तहत अनुज्ञा के बिना भवन के सन्निर्माण का शमन करने पर वर्तमान में विचार किया जा सकता था अथवा नहीं? परीक्षण करने से यह ज्ञात हुआ कि धारा 187-क के तहत उसी भवन का शमन किया जा सकता है जो अन्य नियमों के अधीन नियमानुसार बनी है। वर्तमान राजस्व अभिलेख में प्रश्नाधीन भूमि मप्र भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 172 के तहत व्यपवर्तित नहीं है, इस प्रकार प्रश्नाधीन स्थल का गैर कृषि प्रयोजन हेतु उपयोग नहीं किया जा सकता। अत: नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 187(क) के तहत शमन किए जाने आधार विद्यमान नहीं पाया गया। जिला दंडाधिकारी ने यह तर्क भी अस्वीकृत कर दिया। इस तरह शुक्रवार को आश्रम प्रबंधन की ओर से योगवेदांत समिति ट्रस्ट की अपील खारिज की गई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें