प्रकाशनाधीन कृति आग का अंश आग से कुछ अंश भाई नितिन पटेल जी के ब्लाग अपना शहर में प्रस्तुत कर रहा हूं... आशा है पसंद करेंगे
माचिस की तीली के ऊपर
बिटिया की पलती आग
यौवन की दहलीज़ पे जाके
बनती संज्ञा जलती आग
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सभ्य न थे जब वे वनचारी
था उन सबका एक धरम
शब्द न थे संवादों को तब
नयन सुझाते स्वांस मरम .
हां वो जीवन शुरू शुरू का
पुण्य न था न पापी दाग…!
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खेल खेल में वनचारी ने
प्रस्तर-प्रस्तर टकराए
देख के चमकीले तिनके वो
घबराये फिर मुस्काये
बढ़ा साहसी अपना बाबा
अपने हाथौं से झेली आग…!
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फिर क्या सूझा जाने उनको
आग से समझी नाते दारी .
पहिया बना लुड़कता पत्थर
बना आदमी पूर्ण शिकारी .
मृगया कर वो देह भूनता
बन गई जीवन साथी आग …!
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जब विकास का घूमा पहिया
तन पत्तों से ढांप लिया …,
कौन है अपना कौन पराया
यह सच उन सबने भांप लिया !
तभी भूख ने दल बनवाये
उगी मन मन भ्रम की आग !
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जाड़ा बारिश धूप तपन सब
वनचारी ने जान लिया
छत से छांह आग से उष्मा
अनुप्रयोगों से ग्यान लिया
और कभी अपना गुम देखा
भय की मन में जागी आग .!
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Bahut Shandar Bhaisaab
जवाब देंहटाएंAapke kavita sangrah ke liye hardik shubhkamnaye...
आग को भिन्न रूपों में प्रस्तुत करती सुन्दर रचनायें!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं!