शुक्रवार, मई 28, 2021

सावरकर ‘वीर’ थे भी या नहीं?


किसी को आहत करने की मेरी मंशा नहीं पर पहले आप अनुसंधान तो कर लें कि जिस व्यक्ति को आप अरसे से वीर का तमगा देने प्रयासरत हैं वे वास्तविकता में वीर थे भी या नहीं...

इतिहास साक्षी है कि जब वकालत करने विनायक दामोदर राव सावरकर इंग्लैंड गए तब वे फ्री इंडिया सोसायटी में शामिल हुए। वे क्रांतिकारी विचारधारा के थे। इसी दौरान भारत में हथियार भेजने के आरोप में ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए। कैद कर जहाज से भारत लाए जाने के दौरान फ्रांस में भागने का भी प्रयास किया जो सफल नहीं हो पाया। विनायक दामोदर राव सावरकर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें अंदमान निकोबार की जेल भेजा गया जिसे उस वक्त कालापानी कहा जाता था। यहां तक कि कहानी तो ठीक रही लेकिन जेल में विनायक दामोदर राव सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार को लिखे गए माफीनामे के 6 पत्र, पत्र में इस्तेमाल की गई भाषा, माफीनामे के आधार पर उन्हें मिली रिहाई और रिहाई के बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार से मिलने वाली मोटी पैंशन के साथ ही जेल से रिहा होने पर उनका किसी स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा न लेना और उल्टा आंदोलन का विरोध करना मेरे निजी विचार से वीरोचित नहीं।

विनायक दामोदर राव सावरकर ने अंग्रेज़ों को सौंपे अपने माफ़ीनामे में लिखा था, ‘अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा.’


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अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगने वाले सावरकर ‘वीर’ कैसे हो गए?|The Wire - Hindi - Hindi News (हिंदी न्यूज़): Latest News in Hindi हिन्दी समाचार लेटेस्ट न्यूज़ इन हिंदी, The Wire Hindi -

http://thewirehindi.com/9830/vinayak-damodar-savarkar-rss-and-freedom-movement/

https://youtu.be/YyA0ReRNtQM



वैक्सीन पॉलिसी पर हाईकोर्ट ने पूछा सवाल विदेशों से टीके राज्य क्यों जुटाएं, केंद्र क्यों नहीं?

 

राज्यों द्वारा वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किए जाने के नतीजों को लेकर मप्र उच्च न्यायालय ने चिंता जताते हुए केंद्र सरकार को सलाह दी कि टीकाकरण नीति पर दोबारा विचार करना चाहिए। मई के महीने में मध्य प्रदेश को जितनी संख्या में वैक्सीन डोज़ दिए जाने का वादा किया गया था, उससे आधे भी नहीं मिल सके। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस बारे में केंद्र सरकार से पूछा है कि राज्यों में ज़्यादा से ज़्यादा यूनिटें लगाकर लोकल स्तर पर ज़रूरी लाइसेंस देकर वैक्सीन उत्पादन क्यों नहीं बढ़ाया जा रहा? क्यों राज्य को ज़रूरत के मुताबिक वैक्सीन डोज़ मुहैया कराने की जिम्मेदारी केंद्र नहीं ले रहा? सिर्फ इतना ही नहीं, न्यायालय ने इस पर गंभीरता से विचार करते हुए केंद्र को टीकाकरण पॉलिसी पर फिर विचार करने की बात भी कही।
चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने यह भी कहा कि देश के बाहर से वैक्सीन जुटाने की इजाजत राज्यों को देने की बजाए स्वयं केंद्र को यह बीड़ा उठाने के विषय में विचार करना चाहिए। न्यायालय ने राज्यों के ग्लोबल टेंडरों की प्रैक्टिस को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की।
ग्लोबल टेंडरो से नहीं मिले पॉज़िटिव नतीजे
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से न्यायालय को बताय गया था चूंकि लोकल निर्माता वैक्सीन डोज सप्लाई नहीं कर सके इसलिए ग्लोबल टेंडर जारी कर 1 करोड़ वैक्सीन डोज जुटाने की कोशिश की गई। इस पर वकील सिद्धार्थ गुप्ता ने कहा कि करीब 7.3 करोड़ की वयस्क आबादी के लिए इतने डोज काफी नहीं होंगे। वहीं, न्याय मित्र नमन नागरथ ने भी कहा कि कई राज्यों ने इस तरह के ग्लोबल टेंडर जारी किए लेकिन पॉजिटिव नतीजे नहीं मिले। इस बात को दोहराते हुए न्यायालय ने कहा कि पॉजिटिव संकेत न मिलने के बाद इस बात को लेकर चिंताजनक अंदेशे पैदा हो गए हैं कि इस तरह की प्रैक्टिस के चलते आने वाले महीनों में राज्य के पास जरूरत के मुताबिक पर्याप्त डोज आखिर कैसे होंगे।
केंद्र फिर नीति पर विचार करे
न्यायालय ने यह चिंता भी जताई कि वैक्सीन की कमी के हालात में जनवरी 2022 तक देश भर को टीका दिए जाने का लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकेगा। कोर्ट ने कहा हमारी राय में, केंद्र सरकार को अपनी वैक्सीनेशन नीति के प्रभाव को लेकर दोबारा विचार करना चाहिए। देश के इतिहास में अब तक जितने भी व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम चले हैं, वो सब केंद्र सरकार ही प्रायोजित करती रही है।

मंगलवार, मई 25, 2021

पारुल बेन जिंदाबाद

 


उस दौर में जब अच्छा लिखने वाले बोलने वाले 'रंगा- बिल्ला' और उनके कुत्तों की दहशत में या तो राग दरबारी गा रहे हैं या फिर चारणभाट बने हुए है। ऐसे में माँ गंगा की व्यथा को माँ सरस्वती की कृपा से कहने का सामथ्र्य जुटाने वाली मातृ शक्ति गुजरात में जन्मी भारत की बेटी कवियित्रि पारुल खक्कर जी को ह्रदय से कोटि-कोटि नमन करता हूँ।

आपने अपनी विश्वस्तरीय रचना 'नंगा साहेब' में वर्तमान में दम तोड़ती व्यवस्थाओं और इसके लिए जिम्मेदार 'रंगा-बिल्ला' को कुछ इस तरह बेनकाब किया की भक्त नाली के कीड़ों की तरह बिलबिला उठे। आप इसी तरह लिखते रहें इसी शुभकामना के साथ पुन: एक बार
पारुल बेन जिंदाबाद