न पीना ख़राब है न पिलाना ख़राब है
पीने के बाद प्रेक्टिस और खेल में ख़राब प्रदर्शन ख़राब है
ये खिलाडी समझ बैठे है कि ये कुछ भी करेंगे और सब खामोश बैठे रहेंगे। अरे मोदी जैसो कि नहीं चली तो ये किस मुगालते में जी रहे है। कुछ खिलाडियो के बयान देखे तो कुछ याद आ गया। आपको याद होगा किसी बीमा कम्पनी के विज्ञापन में कुछ खिलाडी बड़े रुआसे अंदाज में कहते है " जब ता बल्ला चलेगा सब कुछ तभी तक है " में आज उन सारे खिलाडियो से एक ही सवाल पूछना चाहता हूँ कि ये सब किस लिए ?
आप कहते है कि जब तक खेल रहे है तभी तक आपको पूछ परख है इसलिए जितना मिला समेटा चाहे खेल हो या विज्ञापन , इसका खेल पर असर पड़े न पड़े कोई फर्क भी शायद नहीं पड़ता।
एक फौजी, सरकारी अधिकारी हो या अन्य कर्मचारी सभी कि पूछ परख शायद तभी तक ज्यादा होती जब तक वे रिटायर नहीं हो जाते
मेरा सवाल ये है कि यदि आप कि तरह ही सभी सोचने लगे तो देश का क्या होगा ?